कविताअतुकांत कविता
मन के आईने में
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
क्यों किसी के पैरों के आहट से ही
दिल धड़क जाता है |
रगों में लहु तेज दौड़ जाता है |
अजीब सी झनझनाहट होती है
जैसे लगता है कोई बिजली सी
कौंध गयी सारे जहन में |
कुछ अनकहे से अल्फाज
निकल आते हैं होठों पर
जो कभी सोचा न था |
फिर लगता है क्या कह गए
बुद्धि अवरोध खड़े करती है
पर जागती है देर से
तबतक तो तीर चल चुके होते हैं
यह ख्याल में लाता है
परिणामों को
रिश्ते के आईने में ढ़ूँढ़ता है
उन नामों को |
पर कहीं नहीं मिलते उनके नाम
चेहरा तो ये भी भूल जाता है
मन के इस सागर में
स्वयं भी घुल जाता है |
जो सामने कभी नहीं आते
न जाने उन्हें क्यों नहीं भूल पाता है |
कृष्ण तवक्या सिंह
18.02.2021