कवितागीत
आयोजन:- सा रे गा मा (अंत का आरंभ)
विषय :- प्रणय मिलन की आकांक्षा
विधा:- गीत
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【रचना】
प्रीत तेरा मंत्र जैसा, स्वास मे ही धारता हूँ।
बिन तुम्हारे कुछ नहीं मैं, बात यह स्वीकारता हूँ।।
आ प्रिये भुजपाश में आ, है मिलन की आज बेला।
शून्य बनकर जी गया मैं, जबतलक था मैं अकेला।।
प्रेम मे पड़कर शुचे अब, प्राण तुझ पे वारता हूँ।
बिन तुम्हारे कुछ नहीं मैं, बात यह स्वीकारता हूँ।।
मौन देते हैं निमंत्रण, गात के हर एक अव्यय।
हैं मिलन को व्यग्र कबसे,नैन सँग कंपित अधर द्वय।।
सद्य आलिंगन मिला ज्यों, यह हृदय फिर हारता हूँ।
बिन तुम्हारे कुछ नहीं मै, बात यह स्वीकारता हूँ।।
है पिपासित प्रीत को अब, सद्य कंपित मीनकेतू।
भर परस्पर बंध में आ, चल बनायें एक सेतू।।
आ प्रिये भुजपाश में आ, द्वेष उर संहारता हूँ।
बिन तुम्हारे कुछ नहीं मै, बात यह स्वीकारता हूँ।।
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✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन'
मुसहरवा (मंशानगर), पश्चिमी चम्पारण, बिहार
📲9560335952
बहुत ही खूबसूरत शब्द संयोजन आदरणीय 🙏
सहृदय आभार
शानदार शब्दों का चयन.. बेहतरीन कल संयोजन... और विषय पर सटीक बैठती रचना... बहुत खूब... आप सतत् ऐसे ही खूबसूरत सृजन करते रहे आदरणीय.. एवं मंच पर अपनी रचना प्रेषित करते रहे.. बहुत बधाई
सादर अभिवादन सहित नमन
वाह... माँ हिन्दी की आप पर विशेष कृपा है..
सादर अभिवादन सहित नमन
बहुत खूब
सादर अभिवादन सहित नमन
सहृदय आभार
सहृदय आभार
बहुत खूबसूरत..👌
सहृदय आभार
सहृदय आभार आदरणीया
सहृदय आभार
सहृदय आभार