कविताअन्य
ज़रा सी नाराज़ रहने लगी है कलम मेरी,
बातें दिल की स्याही से उतारने नहीं देती
कुछ अल्फाज़ कैद है दिल के अंदर ,
जैसे एक लंबी खामोशी के बाद गहरा समुंदर
सही ,गलत के चक्कर में न जाने
कितना कुछ बिखर जाता है ।
जैसे तुफान लेकर रूप किसी
बवंडर का आता है ।
कुछ किस्से ,कुछ बातें अधूरी रह जातीं है,
कुछ सवाल,कुछ ख़्याल दफन हो जाते हैं ।
जो सही होते है ,वही कफन हो जाते हैं ।
टूटते हैं सपने कुछ इस तरह से ,
जैसे बरसों पुराने धागे कच्चे होकर टूट जाते हैं ।
जिसके लिए जीवन जीने की इच्छा होती है ,
उनसे तालुकात टूट जाते हैं ।
गलत नहीं होते हम फिर भी लोग रूठ जाते हैं ।
बस शब्द नहीं होते जो साबित कर सके सही,
झूठ सच,पाने खोने,अहम वहम की जंग में
सब रिश्ते टूट जाते हैं ।
©भावना
फरीदाबाद ,हरियाणा