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आज भी पीछा करती हैं - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

आज भी पीछा करती हैं

  • 263
  • 8 Min Read

ना जाने क्यूँ
आज भी पीछा करती हैं
जाने या फिर
कुछ अनजाने ही सही
आ भरती हैं
मन का ये सूना आँगन
पल-पल बूँद-बूँद रिसता सा
मन का ये झीना दामन

भूली-बिसरी सी कुछ यादें
यादों की गालियों में बिखरी,
चाही या फिर अनचाही,
वे जिंदगी से मुलाकातें
उस पे किये हुए कुछ दावे,
उससे लिये-दिये कुछ वादे
खडे़ ना हो पाये जिनके
साथ-साथ चल पड़ने को,
मुँह चुराते खुद से ही
हिम्मत हारते से कुछ
नाकाम इरादे

वो जो होते रहे साबित
कुछ खोखले से,
बाहर से कुछ
चमकते-दमकते से
पर भीतर से कुछ दोगले से

जमीर की धुँधली
पड़ती सी रोशनी में
दूर-दूर से छितराते
अँधियारे को ही रोशनी
समझते और इतराते

हर मोड़, हर दोराहे पे,
भरमाते से चौराहे पे
जाने क्यूँ ठिठकते से,
मंजिलों के साये से
दूर, बहुत ही दूर
जाकर छिटकते से

हाँ, वे लमहे कुछ भरमाये से
वे जगहें, वे दायरे
और उनके काले साये वे
जबरन आकर
जिंदगी को घेरती सी
वे वजहें और
उनसे उठते सवाल वे,
बार-बार यूँ उनसे मात खाये से

बार-बार ठोकर खाते से
हर कदम पर ना जाने क्यूँ
मकसद खोते जाते वे
खुद की, हाँ, बस खुद की ही
बाँधती सी बंदिशों में
कैद होते जाते से

रास्ते में भटकते से
अधर में लटकते से
खुद ही उगाई झाडि़यों के
काँटों में फँसा दामन
दुविधाओं की दलदल में
बारंबार धँसा सा मन

खुद के ही खोदे उन सभी
गड्ढों की गहराइयाँ
कुंठाओं की गहराती परछाइयाँ

अक्सर आकर पीछे से
मन को आ दबोचती हैं
पछतावों के लंबे-लंबे
और नुकीले नाखूनों से
नोचती हैं

आज भी आ छलती हैं
खुद ही ओढी़ मजबूरियाँ,
खुद से ही खुद की दूरियाँ
आज भी पीछा करती हैं
ना जाने क्यूँ
आज भी पीछा करती हैं

द्वारा : सुधीर अधीर

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

हर बार की तरह बहुत ही उम्दा

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

यादें पीछा नहीं छोड़ती ंं।

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर सर

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