कविताअतुकांत कविता
मुझको खुद से नजर मिलाएं
एक जमाना बीत गया
खोई रही दुनियां की भीड़ में
खुद की सुध को भुला बैठी
मुझको अपने गले लगाएं
एक जमाना बीत गया
हंसना रोना संग संग दोनों
जाने कैसे करती हूं
होठों पर मुस्कान सजाएं
एक जमाना बीत गया
इसका, उसका जाने किसका
सबकी बातें सुनती हूं
मुझको खुद से खुद बतियाये
एक जमाना बीत गया
प्रेम बांटते रहना सब में
दिल ना दुखे मेरे कारन
खुद से खुद को प्यार निभाये
एक जमाना बीत गया
अंजनी त्रिपाठी
हरिद्वार उत्तराखंड
आह, नारी की व्यथा !दिल रोता हो, होंठों पर मुस्कान रहनी चाहिए ! विडम्बना!
खुद का खुद से मिलन बेहद खूब बहुत सुंदर सृजन
धन्यवाद मैम