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आबोहवा - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

आबोहवा

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आबोहवा

मिनी और शीना बचपन की सहेलियाँ। संयोग या योग क्या कहे,दोनों बन गई समधनें। मिनी का बेटा आकाश शीना की बेटी धरा को दिल बैठा।
आगाज़ तो अच्छा हुआ। पर सास तो मिट्टी की भी तानें मारने से नहीं चूकती, " मैं समझी कि तुम भी शीना जैसी अच्छा खाना बनाती होगी पर,,," धरा बेचारी सासू माँ की हाँ में हाँ मिलाती, " जी माँ,"अब सब्ज़ी में खूब मसाले डालूँगी,वैसे आप को नुकसान,,,। हाँ जी,चाय को भी उबालूंगी।"
शीना परेशान हो मिनी से बात करती है," देखो अब हम समधन यानी समान ध्येय वाली बन गई हैं। लोग सुनेंगे तो मिर्च लगा फैलाएंगे ही। नर्सरी से पौधा घर लाते हैं। उसे गमले में लगाते हैं तो शुरुआती दिनों में मुरझा जाता है। पत्तियां झड़ जाती है आबोहवा का बदलाव जो हुआ है। धीरे धीरे वह जड़ पकड़ कर फलने फूलने लगता है। धरा के साथ भी हालात बदले हैं। एडजस्ट होने के लिए समय तो चाहिए ना।"
सरला मेहता

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

बहुत समझदारी वाली कही।

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत ठीक

Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

बहुत अच्छी

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बढ़िया

दादी की परी
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