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जब राम नही बन सकते - राजेश्वरी जोशी (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

जब राम नही बन सकते

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जब राम नही बन सकते

जब राम नही बन सकते हो तुम,
तो फिर सीता को क्यों चाहते हो।
क्यों हर बात पर तुम उसपर,
यूँ ही हरदम कलंक लगाते हो।

क्यों लेते हो हर युग में अग्निपरीक्षा,
क्यों धोबी की बातों में आते हो।
जब राम नही बन सकते हो तुम,
क्यों सीता को तुम चाहते हो।

नौकरी भी करवाते हो उससे तुम,
ओर उसी पर शक दिखलाते हो।
अगर बात कर ले किसी से वो,
अंगारों सी आँखों से जलाते हो।

विश्वास करना सीखों नारी का,
मत उसका तुम अपमान करो।
तुम्हारी अर्धांगनी है वो ये सोचो,
जरा तो उसपर विश्वास करो।

ये त्रेता युग नही है कलियुग है ये,
एक नही सहस्त्रों रावण विचरते है।
अब तुम अगर सीता को वनवास दोगे,
वाल्मीकि भी अब नही मिलते है।

वाल्मीकि भी अब धरा मैं नही मिलते है,
हर ओर बस रावण ही विचरते हैं।
बाद में गलती समझ तू बहुत पछतायेगा,
पर तब सीता को जीता कहाँ पायेगा।

लव- कुश जैसी संताने कहाँ से देखेगा,
कैसे फिर तू अपना वंश बढ़ायेगा।
राम अगर नही बन सकते हो तुम,
तो फिर सीता को क्यों चाहते हो।

ये स्वरचित है।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

कसौटी पर स्त्री को ही खरा उतरना होता है।यह परीक्षा अनवरत चलती रहती है।

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

सुंदर

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