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कफस में कनेरी - Swati Sourabh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

कफस में कनेरी

  • 475
  • 5 Min Read

क़फ़स में कनेरी

जाल बिछाया छलिया अहेरी,
कहां समझी मैं नन्ही कनेरी?
देकर मुझे अधम ने प्रलोभन,
छीन लिया मेरा उन्मुक्त गगन।

हो गई कफस में कैद,
मां मैं ,झर - झर बहे मेरे नैन।

ना भर सकती ,अब स्वच्छंद उड़ान,
दफन हो गए ,क्षितिज के अरमान।
कहते,सुना; कनेरी सुन्दर गान,
क्रंदन में ना निकलते, मधुर तान।।

क्यों किया कफस में कैद?
क्या थी मां हमसे बैर?

बंद कफस में ना फैलते पंख,
निराश हो जाता ये पुलकित मन।
विरह वेदना किसे बताऊं?
मौन रुदन कर खुद को समझाऊं।

मान लिया है इसे ही नसीब,
दुआ है ना मिले, ऐसी जिन्दगी कभी।
आज़ादी की कभी दरख़्वास्त ना की,
इनकी ख़ुशी में जिन्दगी कुर्बान कर दी।

देते हैं मुझे सब दाना पानी,
उदास स्वर में ही पड़ती है गानी।
ना आना मां तू इधर कभी,
वरना हो जाएगी कैद तू भी।

ढूंढ़ती हूं तुझे मैं भर - भर नैन,
विचलित मन रहता बेचैन।
मां मैं ,हो गई कफस में कैद ,
नन्ही कनेरी ,है कफस में कैद।।

स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
भोजपुर,बिहार

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Priyanka Tripathi

Priyanka Tripathi 4 years ago

बहुत बढ़िया

Swati Sourabh4 years ago

Thank you maim ?

Anupma Anu

Anupma Anu 4 years ago

बहुत सुंदर सृजन स्वाति आपने एक कनेरी चिड़ियां के बेबसी को बखूबी उकेरा है

Swati Sourabh4 years ago

Thank you Di ?

Swati Sourabh4 years ago

Thank you Di ?

Gita Parihar

Gita Parihar 4 years ago

कनेरी की बेबसी को बखूबी शब्दों में उकेरा है।

Swati Sourabh4 years ago

बहुत बहुत धन्यवाद मैम??

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