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एक शाम - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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एक शाम

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एक शाम
शाम रोज़ आती है। लेकिन आज सी उदासी कभी नहीं छाई। ममता जी बहु दिव्या व बेटी काव्या के साथ बरामदे में आ बैठी। वे नहीं चाहती कि बहु ऐसी हालत में सरहद पर चल रही मुठभेड़ों की खबरें टी वी पर देखे। वे बोली,. " बेटा ,अब कुछ खालो और कुहू को भी दूध वगैरह दो। पापा को चाय बना देना। दोपहर से टी वी पर आँखें गढ़ाए बैठे हैं।"
अचानक बिजली कड़की और बारिश होने लगी। दिव्या आकर माजी को चाय का मग देती है। ममता जी अपने भीगे आँचल को छाती से लगाए सोचती है," कहीं मेरी दिव्या का सिंदूर इन बौछारों से,,,।" वह अपना पल्लू बहु के सिर पर डाल देती है। काव्या की आँखों की जलधारा भी बौछारों से मिल गई है। आने वाली राखी पर भैया के आने के बारे में सपना संजो रही है।
यकायक बारिश थम गई, आकाश साफ़ हो गया।
अंदर से पापा दौड़ते हुए आए," दुश्मन को भारत ने परास्त कर दिया है। हमारा कोई सैनिक शहीद नहीं हुआ है। बहु अब कुछ खाने का लाओ।"
ममता जी पूजाघर में जाकर दीया जलाने लगी।
सरला मेहता

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

बहुत सुंदर सृजन

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

सुंदर

Anupma Anu

Anupma Anu 3 years ago

बहुत खूब

दादी की परी
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