कविताअतुकांत कविता
वो जगह बता मुझे
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न जहाँ आसमान हो
न जहाँ जमीन हो
बता दे वह जगह
जहाँ तू नहीं मलिन हो
देखना चाहता हूँ मैं तुम्हें
बिना बादलों की ओट के
धूल जिसपर ना पड़े
कोंपलों को निकलने दे
जहाँ बिना खोट के |
न हो जहाँ रोशनी
न अंधेरों का राज हो
वो जगह बता दे
जहाँ न रस्म और रिवाज हो
खिलती हों कलियाँ जहाँ
अपने ही अंदाज में
जहाँ न बसते हों प्राण हमारे
किसी के ताज में
न जहाँ प्रतिक्षा ,न इंतजार हो
न जहाँ स्वर्ग नरक
न सुलगता अंगार हो |
वो जगह बता दे
जहाँ न कोई दीवार हो |
कृष्ण तवक्या सिंह
07.11.2020