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जरुरतमंद - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

जरुरतमंद

  • 232
  • 8 Min Read

सर्दियां आ गई हैं,गर्म कपड़े ड्राई क्लीन करवाने थे।मुझे और भी कुछ काम था , निकल पड़ी।ड्राई क्लीनिंग की दुकान के सामने ड्राइवर ने कार रोकी, कपड़ों का बंडल उठाया और दुकान के अंदर पहुंचा। मैं उतरी,बगल के शोरूम से कुछ देखना था।
 तभी एक औरत ने बढ़कर मेरे घुटने पकड़ लिए। मेम साहब, पैसों की सख्त जरूरत है,हम गांव से आए थे,पति का एक्सीडेन्ट हो गया,वह अस्पताल में हैं, उनके खून चढ़ेगा,उसके लिए कुछ मदद कर दीजिए।"
" गांव से क्या खाली हाथ आए थे?" उसे हाथ के इशारे से दूर  रहने को कहा।
"मेम साहब,घर से ठीक-ठाक जरूरत भर का पैसा लेकर ही चले थे। रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया।अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।खून बह गया है। डॉक्टर ने कहा है, एक बोतल खून चढ़ेगा। कम से कम ढाई हजार रुपए की जरूरत है।मेम साहब, भगवान आपका भला करेगा, कुछ पैसे दे दीजिए।"
 मैंने इधर- उधर देखा और उसके हाथ में सौ का नोट पकड़ाया। देना तो मैं कुछ भी नहीं चाहती थी, लेकिन एक तो ड्राई क्लीनर वाला देख रहा था और दूसरा ड्राइवर भी वापस आ चुका था। अपनी स्टेटस का तो ख्याल रखना था! 
 लौटते हुए हनुमानगढ़ी के मंदिर पर दर्शन करने के लिए मैंने ड्राइवर से गाड़ी रुकवाई।देखती क्या हूं कि फूल वाले की दुकान के सामने वही औरत खड़ी  है !इतनी जल्दी इतना लंबा रास्ता उसने कैसे तय कर लिया? मुझे देखते ही वह इधर-उधर देखने लगी। मेरे लिए गुस्से पर काबू रखना मुश्किल था। फ्रौड कहीं की!"अब क्या हुआ, तुम्हारे पति का इलाज हो गया ? झूठी, मक्कार।"
" मक्कार ,नहीं, मेम साहब, वहां खड़े- खड़े मुझे हजार रुपए से ज्यादा मिल गया और मैंने उसे अपनी इस कुर्ती की जेब में रखा था, मगर मुझे क्या पता था कि मुझसे भी बड़े जरूरतमंद यहां घूम रहे हैं। देख रही हैं, यह मेरी फटी जेब!

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Anupma Anu

Anupma Anu 3 years ago

बहुत खूब

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर..!

Gita Parihar3 years ago

धन्यवाद

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बढ़िया

Gita Parihar3 years ago

आभार

दादी की परी
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