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मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है - Bhawna Sagar Batra (Sahitya Arpan)

कवितानज़्मअन्य

मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है

  • 289
  • 4 Min Read

मिले खुदसे हुए एक ज़माना सा लगता है -२
खुद में खुद को ढूंढना कुछ पुराना सा लगता है ।

आओ चले एक ऐसी हवा के संग -२
जिसमें नदी की तरह बहना,बहाना सा लगता है ।

और यूँ तो हर रोज़ देखती हूँ आईना मैं -२
मगर न जाने क्यों ये चेहरा बेगाना सा लगता है ।

भीड़ है बहुत आस पास मेरे ,मगर हर पल तन्हा सी मैं
कुछ धुत्त है मुहोब्बत के नशे में,तो कुछ टूटे हुए है
यहां हर शख्स भावना,दिवाना सा लगता है ।

और यूँ तो मुलाकातों के सिलसिले बहुत है खुदसे -२
मगर न जाने क्यों,खुदसे मिले हुआ ज़माना सा लगता है ।

कुछ गुम सी है मुस्कुरहटें,कुछ कम सी है तस्वीरें भी अब-२
डायरी का हर अक्षर अब,धुंधलाना सा लगता है

और यूँ तो रूबरू हो ही जाएंगे एक दिन खुदसे-२
मगर तब तक के लिए,हर शख्स अंजाना सा लगता है ।


©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा

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शब्बीर मुनव्वर

शब्बीर मुनव्वर 3 years ago

अच्छे भाव व्यक्त किए है बहुत खूब

कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

कुलदीप दहिया मरजाणा दीप 3 years ago

वाह क्या खूब कहा निशब्द

Bhawna Sagar Batra3 years ago

जी शुक्रिया

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

वाह, क्या ख्याल है!

Bhawna Sagar Batra3 years ago

जी शुक्रिया

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर

Bhawna Sagar Batra3 years ago

जी शुक्रिया

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