कहानीप्रेम कहानियाँ
बारिश वाला प्यार भाग १
रुकी हुई ज़िंदगी
सामने वो भीग रही थी बिलकुल पागलों सी मैं उसे तब से देखे जा रहा हूँ जब से ये बरसात शुरू हुई है।
कभी पानी की बूँदे अपने आँचल में भरती है तो कभी अपना दुपट्टा निचोड़ने लगती है।
जब वो ऐसा करती है तो उसके शरीर के अंग उसकी उम्र की कहानी बड़ी बेशर्मी से कह दे रहे हैं।
पर जब वह भीगे आँचल को क़रीने से अपने शाने से लपेटते हुए अपनी कमर से कस कर बांध ले रही है तो वह मुझे मेरी किसी रुकी हुई कहानी के कथानक सी लगने लग रही है।
मैंने मोबाइल उठा कर घड़ी देखी पूरे दो घंटे से हो रही है बारिश और लगभग डेह घंटे से तो ये भीग ही रही होगी।
कितनी अजीब है ये लड़की न जाने कितने नम्बर वाले फ़्लैट में रहती है मैं अपनी पहली मंज़िल की बालकनी से उसे देख रहा हूँ या यूँ कहिए कि मैं चिढ़ रहा हूँ।
सच तो ये है कि मुझे ग़ुस्सा आ रहा है वो भी बहुत ज़्यादा मैंने बड़बड़ना शुरू किया।
“आख़िर लोग भीगते ही क्यूँ हैं वो भी बारिश में? कितनी किच-पिच हो जाती है।
न जाने कितने कीटाणु साथ चले आते हैं जब भीग के घर आओ तो।”
बारिश अब हल्की पड़ रही है और वो भी उस जगह से वापस जा रही है बल्कि ले जाई जा रही है।
लगता है उसका मन अभी भी नहीं भरा है।” हूँ!” देखने से लग रहा था शायद उसकी मम्मी है।
मैं इतनी ऊँचाई से उनकी बातें सुन तो नहीं पा रहा हूँ पर जिस तरह से वो उसका हाथ पकड़ कर ले जा रहीं हैं यहीं से लग रहा था की लड़की बड़ी ज़िद्दी है।
लेकिन जैसे जैसे वो मेरे टावर के पास आई मुझे उसकी सुंदरता ने अपनी ओर आकर्षित किया।
उसका नीला सूट और नीला दुपट्टा उसके बादामी चेहरे पर जो भीग कर कहीं-कहीं ज़्यादा सफ़ेद सा लग रहा है मेरे पूरे बदन में न जाने क्यूँ एक सिहरन सी पैदा करने लगा।
शायद ये सोच कर कि अब वह घर जाएगी तो पूरा घर गंदा करेगी।
लेकिन अभी भी उसकी माँ और उसके बीच में खींचा-तानी चल रही थी अचानक वो खिलखिला कर हँस पड़ी मुझे आवाज़ तो नहीं सुनाई दी पर उसका हँसता हुआ चेहरा मेरे मन को भी गुदगुदा गया।
अब मैंने न जाने क्यूँ चुपके से अपने फ़ोन को थोड़ा नीचे कर के उसकी तस्वीर लेने की कोशिश करी।
पर मैं हमेशा से एक बुरा फ़ोटोग्राफ़र हूँ ये आज फिर साबित हो गया।
बस नीचे की हरी घास के साथ ब्लर सा कुछ नीला- नीला सा आया
शायद उसका दुपट्टा।