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सोचते रहना - Sandeep Chobara (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

सोचते रहना

  • 191
  • 2 Min Read

सुनो-

तुम्हें हर बार #सोचना
और-
सोचते रहना

#बदन में एक
#सिहरन सी उठती है
तुम्हें याद करके
एक तो #शीत
और-
दूसरा तुम्हें #महसूस करना
अक्सर #दर्द जगा जाता है....

#तन्हाइयां भी असमय
घेर लेती है आकर
उठते दर्द को
ओर बढ़ा जाती है
टूटता #बदन
#बेहिसाब
#बेसबब
#अहसास करा जाता है
बस.....
तुम्हारी #कमी को..........!!


#संदीप चौबारा
30/10/2020

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Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

उत्तम सृजन

Sandeep Chobara3 years ago

हार्दिक आभार जी???

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

भावपूर्ण कविता

Sandeep Chobara3 years ago

जी बेहद शुक्रिया??

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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