कविताअतुकांत कविता
सुनो-
तुम्हें हर बार #सोचना
और-
सोचते रहना
#बदन में एक
#सिहरन सी उठती है
तुम्हें याद करके
एक तो #शीत
और-
दूसरा तुम्हें #महसूस करना
अक्सर #दर्द जगा जाता है....
#तन्हाइयां भी असमय
घेर लेती है आकर
उठते दर्द को
ओर बढ़ा जाती है
टूटता #बदन
#बेहिसाब
#बेसबब
#अहसास करा जाता है
बस.....
तुम्हारी #कमी को..........!!
#संदीप चौबारा
30/10/2020