कविताअतुकांत कविता
मै अभिभूत थी तेरे प्यार में,
सोचती थी इसे कहां संजोऊ
रखूं किस दिल की तिजोरी में,
कैसे बचाऊं सबकी नज़रों से,
दिन पर दिन निखर ,
रही थी तेरे प्यार में ,
सोचती थी कैसे करू इजहार,
डरती थी दुनिया की निगाहों से,
चाहती थी छुपा लो एक नन्ही चिड़ियाँ की तरह
मुझे बांध लो उन मजबूत हाथों में ,
अफसोस तुम तो यू ही चले गये ,
जैसे भोर के आगमन पर चांद चला जाता है,
छोड़ जाता है याद भरा सपना