कविताअन्य
कभी खा म खां,कुछ बेवजह आओ पास मेरे ,
यूँ ही बेवजह करलो कुछ बातें,
दो वक्त कुछ पलों का मुझे ,
आओ कभी बैठो पास तसल्ली से ।
ठण्डी हवाओं का माहौल हो,
एक कप चाय और दो प्याली ,
उस आधे कप की चाय करदे
हर बात को पूरा ,
कुछ तुम सुनो कुछ मैं कहूँ ।
इतना सा वक्त दो मुझे
आओ कभी बैठो पास तसल्ली से ।
न आजू बाजू शोर हो,
न आस पास कोई और हो ।
हाथों में हो हाथ तुम्हारा ,
नज़रो में भरलो अपनी तुम मुझे ।
आओ कभी बैठो पास तसल्ली से ।
जिंदगी की भागदौड़,
और ज़िम्मेदारियों का बोझ
एक दूसरे के साथ साथ ,
खुद को भी भुला चुके होते है हम ।
कुछ वक्त निकालो मुझे देने के बहाने,
खुद के लिए और भरो चेहरे पर मुस्कान
एक फुर्सत से
आओ कभी बैठो पास तसल्ली से ।
कुछ पलों में आओ एक जिंदगी जी आए,
कुछ पलों के लिए खुद को नया सा पाए ,
कुछ पलों के लिए आओ एक दूसरे के हो जाएँ।
©भावना सागर बत्रा की कलम से
फरीदाबाद,हरियाणा
बहुत बढ़िया रचना। कभी-कभी ऐसा भी ज़रूरी है
जी बहुत ज़रूरी