कविताअतुकांत कविता
श्रद्ध्येय निराला जी को समर्पित
भारत को आलोकित करने
उदय हुआ इक सूर्य निराला
कई नजदीकी उनके रिश्तेदार
एक एक करके उन्हें छोड़ गए
दुःख निराशा की कुछायाएं
काव्य में समाके साकार हुई
छायावादी महेश वे कहलाए
व भावों को अभिव्यक्त किए
इस युग के बने थे गोरखनाथ
भाई ने थामे महादेवी के हाथ
महाप्राण ओढरधानी कहलाए
छंदमुक्त काव्य के अगुवा बने
पथ पर नारी तोड़ती पत्थर है
कभी कांपते दोनों पाँव उसके
अणिमा अपरा बेला व अर्चना
परिमल आराधना अनामिका
नए पत्ते सी भावपूर्ण रचनाएँ
वर मांगा माँ वीणावादिनी से
काव्याकाशे इंद्रधनुषी रंग भरे
सरला मेहता