कविताअतुकांत कविता
***मौन हूं, अनभिज्ञ नहीं***
मैं धरा हूं
जन मानस की जननी
तुम्हारी महत्त्वाकांक्षाओं से घायल हूं
मौन हूं, अनभिज्ञ नहीं!
मै स्त्री हूं
असंख्य भूमिकाएं अदा करती
तुम्हारी पराकाष्ठाओ पर बली चढ़ी हूं
मौन हूं, अनभिज्ञ नहीं!
मै न्याय हूं
न्यायालय की चौखट पर दम तोड़ती
राजनीति,भ्रष्टाचार,कुकृत्यो से लिप्त हूं
मौन हूं, अनभिज्ञ नहीं!
मै रिश्ते हूं
तीखी कटारी से छिन्न भिन्न
संस्कारों मे कैद हूं
मौन हूं, अनभिज्ञ नहीं!
__ प्रियंका त्रिपाठी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश