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शादी का कार्ड
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मीता को अपने हाथ की यह अंगूठी जो कभी उसके मन में उमंगे जगाती थी उसको देख कर वह भविष्य के सुनहरे सपनों में खो जाती थी । आज वही अंगूठी उसे सांप की केंचुली की तरह नजर आ रही थी । उसके और मानव के रिश्ते में दरार पड़ गयी । वह आवेश में हाथ में पकड़े कार्ड को मसल रही थी । मीता के हृदय में ज्वालामुखी धधक रहा था । तीन साल से पल पल पर जरा सी आहट से वह चौंक जाती थी । मानव का साया हर समय उसके साथ रहता था । उसने मानव को अपना सब कुछ सौंप दिया था । दोनों एक दूसरे के बिना एक पल नहीं रह पाते थे पर अचानक कुछ दिनों से मानव का व्यवहार बदला बदला सा लग रहा था । वह उससे कुछ कटा कटा रहने लगा था । बहुत मुश्किल से उसने उसका फोन उठाया । मीता ने मानव से कहा कि वह उससे मिलना चाहती है। बहुत मुश्किल से वह मिलने को तैयार हुआ । जब वह मानव से मिली तो उसने मानव से कहा मानव तुम अपने घर वालों से बात करो मै अब तुम्हारे बिना नहीं रह
सकती । मै तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूँ और समाज कुवांरी मां को सहन नहीं करता । मानव चुप रहा बोला मै बात करके जवाब देता हूँ और चला गया । वह आंखो में आंसू भर कर घर लौटी उसकी मां ने पूछा क्या बात है । वह चुप रही मां ने कहा कि तुम्हारे नाम से शादी का कार्ड आया है। उसने कार्ड खोल कर देखा वह मानव की शादी का कार्ड था । 15 दिन बाद उसकी शादी थी । मीता को शायद इससे बड़ा कोई और धोखा नहीं
मिलता । वह बस कार्ड को मसले जा रही थी ।
स्व रचित
डा.मधु आंधीवाल एड.
©
madhuandhiwal53@gmail.com
नैतिक मूल्यों के समाप्त होते जाने के ऐसे अनेक उदाहरण हैं, लड़कियों को सावधान होना होगा।
आभार
बहुत खूब। लेकिन मुझे लगता है कि इस रचना को थोड़ा और एडिटिंग की जरूरत है कथानक बहुत ही बढ़िया है थोड़ी और एडिटिंग से रचना निखर जाएगी
ये मेरी सबसे पहली रचना थी कल कागज मिल गया मैने पोस्ट कर दीमै भी थोड़ी और कसावट चाह रही थी पर समय नहीं था