कविताअन्य
शीर्षक: "मोहोब्बतें"
मोहोब्बत की मीठी सी मुस्कान ले कर, छाया था,
दिल की ज़मी, पर इश्क़ का आसमान हो कर!
खामोश नज़रो से सुना गया मोहोब्बतें,
धड़कनों को मेरी, अपनी जुबान दे कर!
ढल गया, ज़िन्दगी में वो मेरी, ज़िन्दगी बन कर
आया था, जो पल दो पल का मेहमान हो कर!
मोहोब्बत बन कर,बहा नस- नस में
,इश्क़ का एक जुनून होकर!
अब मुझमे धड़कने लगा था कहीँ,
इस दिल की धड़कन ले कर!
मेरा चाँद बनकर रूठा कभी, तो कभी जगाया
सुबह की मीठी मुस्कान दे कर!
उतर कर रूह में, लफ्ज़ो सा ढल गया,
इश्क़ की एक दास्तान बन कर!
छाया है, आज भी जो दिल की ज़मी पर,
इश्क़ का आसमान हो कर..!
© पूनम बागड़िया "पुनीत"
(दिल्ली)
स्वरचित तथा मौलिक रचना