कविताअतुकांत कविता
' अबोली आँखें '
सुनो बच्चे !
ये तुम्हारी आँखें ,
' अबोली आँखें ' ,
कुछ न कहकर भी ,
कहती हैं बहुत कुछ ..
ये कहती हैं
तुम्हारे मन की
कशमकश को ।
सवालों में उलझी ,
जिज्ञासा की
अनवरत बहती धार को ..
कि क्या निराशाओं के
बादलों से बरसेगी ,
सुखरूपी अविरल बरसात ?
हाँ !
बयाँ करती हैं ,
तुम्हारे डर को ..
अनजाने भय को ..
क्या दुःख अभाव के
काले रंगों से घिरे
भविष्य में ,
एक सुरक्षित कोना ,
मिल पाएगा मुझे ,
जो लिख पाऊँ कभी
सुनहरी तहरीर को ...!
सुनो बच्चे !
निराश न होना तुम !
ये अबोली आँखें ही
संबल है तुम्हारा ..
तुम देखना सपने
आसमां को छूने के ,
कभी छोड़ना ना
दामन उम्मीदों के !
पलेंगे सपने आँखों में तो
पूरे भी जरूर होंगे !
हिकारत की निगाहें होंगी तो
दुआओं में उठे हाथ भी होंगे !
और देखना तुम
एक दिन ,
इन्हीं अबोली आँखों से ..
ये जहाँ मुट्ठी में
तो आसमां ,
ये चाँद सितारे
क़दमों में होंगे...!
बहुत ही सुंदर रचना बालपन की अंबोली आंखे। कितने अच्छे से प्रकट किया है बालपन के सवालो को
आभार ममता जी
बाल मन के भावों को दर्शाती हुई बेहद खूबसूरत रचना। सच मासूम और अब बोली आंखें ना बोलते हुए भी कितना कुछ बोल जाती हैं बस वह आंखें चाहिए जो उनके भाव को पढ़ सकें। तुम देखना सपने आसमां को छूने का कभी छोड़ना ना दामन उम्मीद का, बहुत ही प्रभावशाली पंक्तियां हार्दिक बधाइयां
सुषमा जी आभार स्वीकारें
बालक के मन की व्यथा का व बालक के मन मस्तिष्क में सकारत्मकता के संचार को रग-रग में उत्पन्न करने का एक अनुपम प्रयत्न किया गया है इस रचना में। निःसंदेह एक उत्कृष्ट काव्य सृजन।✍️??
संदीप जी आभार