कहानीप्रेरणादायक
आज सुबह फिर वो माँ की डांट सुनकर गुस्से में, घर से बाहर निकल आया, आज फिर उसने सोच लिया कि अब कुछ भी हो घर नही जाऊगा। भला ऐसा कोई करता है ? मेरे सभी दोस्तों को आज़ादी है पर मुझे ही नही है सब अपनी ज़िंदगी जीते हैं पर मैं मैं क्यों नही अपनी मर्जी से, खुल कर जी सकता हर समय, मम्मी की बंदिशें घर जल्दी आया करो, रात को जल्दी सोया करो, स्कूल से सीधा घर आओ, ये नही कहना वो नही खाना, यहाँ नही जाना, इससे दोस्ती नही करनी, उससे नही बोलना। उफ्फ ! कितनी बंदिशें ?
वो अपनी इसी सोच में उलझा सारा दिन यहाँ वहाँ भटकता रहा
शाम होते होते उसका गुस्सा भी रात की भाँति गहराने लगा कि था कि तभी एक अंधेरी गली में एक 10 11 साल का बच्चा कुछ तलाश करता दिखाई दिया, वो उसके पास जा कर बोला "क्या हुआ ? तुम रात मे यहाँ क्या कर रहे हो ?
"मम्मी को ढूंढ रहा हूँ"
वो भोले मन से बोला
"दादी कहती है, माँ की गोद मे ही हर बच्चे का स्वर्ग हैसकून है
बसवही ढूंढ रहा हूँ
बच्चे की आँखों से मासूमियत के साथ आँसू गालो छूने लगे
"मम्मी की गोद मे मिलने वाला वो स्वर्ग और सुकून मुझे भी चाहियें बच्चे ने कहा तभी एक आलीशान कार पास आ कर रुकी उसमें से एक सूट बूट में वो व्यक्ति उतरा बच्चा भाग कर उस व्यक्ति से लिपट गया।
"पापा। मम्मी यहाँ भी नही है!!
वो व्यक्ति भीगी आँखो से बच्चे को दुलार करता हुआ, गोद मे उठा कर बोला-
"घर चलो बेटा मम्मी अब कभी नहीं मिलेगी।
वो ख़ामोशी से सब देख रहा था, अनायास ही बोल उठा-
"इसकी माँ कहाँ है ?
"वो अब इस दुनिया मे नही है" कह कर वो व्यक्ति कार में बैठ कर चला गया।
वो अपने विचारों में उलझ गया, इस बच्चे के पास सारी सुख- सुविधा है, फिर भी ये माँ की गोद के लिये सड़को पर पागलो सा भटक रहा है और एक मैं हूँ, जो दुनिया की सबसे अनमोल सुख जिसके बिना जीवन नही, उस माँ के स्नेह को अपने पैरो का बन्धन समझ कर, उसे छोड़ कर जाना चाहता हूँ। उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा, की वो माँ के प्यार को नही समझ स्का पश्चाताप से उसका मन भर गया
वो वही गली की दीवार के निचे बैठा सर झुकाये रोये जा रहा था तभी किसी का हाथ अपने कंधे पर महसूस किया उसने चौक कर देखा सामने पापा खड़े थे
"घर चलो, तुम्हारी मम्मी का रो रो कर बुरा हाल है, तुम्हारे बिना"
ये सुनते ही वो पापा से लिपट कर रोने लगा।
"मुझे माफ़ कर दो पापा, मम्मी की स्नेहिल डाँट को अपनी इंसल्ट समझता था।
"तुम्हारे अपनी गलती का एहसास है इतना ही काफी है
पापा उसे प्यार से समझते हुए बोले-
"सुबह का भुला अगर शाम को घर आ जाये तो वो भूला नही कहलाता"
पापा के ये शब्द उसे दिलासा तो दे रहे थे पर फिर भी उस अंधेरे के सन्नाटे में, उसकी गलती उसका पीछा करती प्रतीत हो रही थी। और वो अपनी गलती से डर कर पापा के सीने से लग अपनी गलतियों से छिपना चाहता था।
©✍पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित मौलिक रचना
मर्मस्पर्शी रचना.. मां का प्रेम सदैव निश्छल और शाश्वत है.
जी सर.... सादर आभार..!