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"बदले"
कविता
रोष
न इन्सान बदलेगा न दहर बदलेगी
साल ये बेमिसाल बदले
मुंतज़िर दोनों तरफ़ अहबाब मुलाक़ात के
हम में उनमें फ़र्क ही क्या
चमन के हालात बदले
बदले हुओं से मिलने को तैयार नहीं हैं हम
वक़्त भी बदलेगा और ये दिन-रात भी बदलेंगे
कलम की ताक़त क्या है
आपके अलावा आपके साथ कोई नहीं
अहबाब भी कम नहीं बदले
मुफ़लिस का कुछ हाल बदले
कहानी
हम कितना बदलें
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