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"तिरा"
कविता
येह तेरा अहसास मेरे साथ मौजूद क्यूं रहता है
दोज़ख भी तिरा क़ुबूल अता फ़रमाकर देख
कुछ तो बेहतर है
रुपय्या बचा कहाँ है
मन के पट खोल दिया करो
कभी हालत हमारी ऐसी न थी
मुक़म्मल मुराद जिंदगी की
नागवार वहम तिरा सरासर नाहक है
जिंदगी तिरा एहतराम किया
काबे में भी वही है काशी में भी वही है
खा ले हवा दो दिन इस फ़ानी संसार की
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
खुशीकैसी कुछ पाने से गमकैसा कुछ खोने से
कहानी
" वो तिराहा "
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