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"क्यूं"
कविता
2020 तू क्यूं रुठा है रे?
अपना क्या है
साल भर अपना रिश्ता रहा
बिटिया कहे
बिटिया कहे
क्यूंकि तू ग़म है...
येह तेरा अहसास मेरे साथ मौजूद क्यूं रहता है
क्यूं करे कोई नफ़रत उनसे
क्यूं उतावले होते हो
पीछे रहबर के क्यूं चलें बशर जब हम अपनी ही डगर चलें
खुद को छलते क्यूं हो
*क्यूं कोसते हो अपने आज को*
ज़ाहिर अपनी तजवीज़ हम क्यूं करें
वजूद हमारा कायम अख़लाक के भरोसे
खुश रहें इन्तज़ार क्यूं करें
बे-सबब तकरार क्यूँ करें
बच निकला उसे रब मिला
बुरे वक़्त से क्यूं घबराता है
बाद मरने के क्यूं ज़माना मेरा दीवाना हुआ
राजी हमसे कोई था ही नहीं
दावते-अदावत क्यूं करें हम
फ़साना-ए-सफ़र अपना क्यूं बेदम लिखें
फ़जूल की उम्मीदमें अपनाही तमाशा क्यूंकरें हम
सब्र और शुक्र कीजिए
कहानी
अनाथ भाग 5
लेख
चैन से जीने दो हमें
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