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अपनों को अपना कहने से डर लगता है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

अपनों को अपना कहने से डर लगता है

  • 50
  • 2 Min Read

मानाकि तीरगी तारीकी जुल्मत में रहने से डर लगता है
अपनों की ख़लक़त की खल्वत में रहने से डर लगता है
दूध के जले हैं छाछ को भी फूंक फूंक कर पीते हैं बशर
अब तो हमको अपनों को अपना कहने से डर लगता है

~ dr.n.r.kaswan "bashar" 🍁

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