Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
मानाकि तीरगी तारीकी जुल्मत में रहने से डर लगता है अपनों की ख़लक़त की खल्वत में रहने से डर लगता है दूध के जले हैं छाछ को भी फूंक फूंक कर पीते हैं बशर अब तो हमको अपनों को अपना कहने से डर लगता है ~ dr.n.r.kaswan "bashar" 🍁