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अपना क्या है - kiran k (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

अपना क्या है

  • 151
  • 3 Min Read

कभी तुमने सोचा है अपना क्या है?
ना जिस्म, ना रूह, ना धड़कन, ना सांसे।

फिर क्यूं ये होड़ ये दौड़ना ये तोड़ना,
जब्त करना सब कुछ और बेवजह की चाहते।

क्यूं आसान नहीं है कि थोड़े में खुश हो ले,
क्यूं सब कुछ पाकर भी नहीं मिलती है राहतें।

क्यूं सुकून की तलाश में भटकते रहे है उम्र भर,
नहीं दे पाते खुद को फुरसत ना पाते है सराहते।

क्यूंकि गर कभी हम गौर करते तो जान पाते,
अपना जहां में कुछ भी नहीं पर सभी में अपनों को ही पाते..

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

वाह बहुत खूब यथार्थ से भरी कविता

kiran k4 years ago

आभार दी। छोटी सी कोशिश।

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

Suvichar .. !

kiran k4 years ago

आभार महोदय

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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