कविताअतुकांत कविता
अभिनय नहीं हमारा अभियान हो हिंदी
अभियान क्यों हमारा अभिमान हो हिंदी
अभिमान है यह देश का, सिरमौर इस परिवेश का
मात्र भाषा ही नहीं, हमारी पहचान हो हिंदी...
मां भारती के वैभव का गुणगान हो हिंदी
हिंदुस्तान के हर वासी का दिन मान हो हिंदी
जानें चाहे कितनी भाषा, भूलें ना अपनी मातृभाषा
जाएं यदि विदेश भी तो हमारा सम्मान हो हिंदी..
नदी सहज बहती है, तब ही कल-कल करती है
मोड़ा रुख जो उसका तो वही प्रलय बनती है
मत छेड़ो अपनी भाषा को, मत खोने दो पहचान इसे
सिर झुकता नहीं किसी का भी, निज भाषा के गुणगान से
परिचय का सूत्र यही है, मैत्री का प्रमेय भी यही है
मां बागेश्वरी का वरदहस्त, ऋषि मुनियों का आशीष यही
हिंद की जीवन रेखा यह, सब ग्रंथों की लेखा है यह
कंठों से निकले हर स्वर का प्रतिमान हो हिंदी....।
अमृता पांडे नैनीताल
उत्तराखंड