कविताअतुकांत कविता
ाये शमा तू फिर भी जल
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इस घोर अंधकार में भी शमा तू क्यों जलती नहीं |
क्या तुम्हें भी अंधकार अच्छा लगने लगा है |
या जिन्होंने अंधकार कर रखा है |
उन्हीं ने तुम्हें बुझा रखा है |
क्या उनकी आज्ञा पाकर ही तुम जलती हो |
या उन्होंने तुम्हें किसी कोनेे में छुपा रखा है |
हजारों आँखें तुम्हारा इंतजार करती हैं
तुम आकर उनके सामने से अँधकार मिटा जाओगी
देख सकेंगे वे भी इस प्रकृति के सौन्दर्य को
आँखों में भर पाएँगे सत्य को , शिव को
और देखेंगे उस तांड़व को जो मचा है यहाँ
उसके संसार से अलग एक संसार इन्होंने रचा है यहाँ
जहाँ इनका राज चलता है |
लिया जाता है प्रभु का नाम ,इनका साम्राज्य चलता है
यहाँ चूसे जाते हैं लहू ,अच्छे भले लोगों को बीमार बनाकर
बेगुनाहों को सजा दी जाती है गुनाहगार बतलाकर
कानून की किताबें इनका ही बयान है
यहाँ के शास्त्रों में इनकी शख्सियत का ही बखान है |
शमा भी कैद है इनके कैदखाने में
हर ओर फैला अंधकार इनके जमाने में
रोगी को ठीक करने की नहीं और रोग बढ़ाने की दवा बतायी जाती है |
तर्क सत्य को नहीं खोजते , तर्क से इनकी बातें सत्य ठहरायी जाती है |
लूटे जाते हैं गरीब , अमीर पैसे से पैसा बनाते हैं |
मेहनत करनेवाले भूखे पेट सो जाते हैं |
मेहनत करनेवालों के झूठे गुण गाए जाते हैं |
कहाँ जीतती है यहाँ मेहनत कभी
फिर भी मेहनत करनेवालों की हार नहीं होती
यह श्लोक दुहराए जाते हैं |
श्रम शक्ति की पूजा के नाम पर
बैलों को कोल्हू में घुमाए जाते हैं |
आँखें ढ़ँककर ,,गोल चक्कर में दौड़ाकर
दुनियाँ के सैर कराए जाते हैं |
ये शमा तू बँधन को जलाकर
क्यों नहीं बाहर आ पाती है |
क्या तुम्हारी लौ भी कँप जाती है
जब इनके क्रोध की बिजली कड़कड़ाती है |
शायद तुझे जलने को तेल नहीं
बाती भी ये जलाकर पी जाते हैं
तू जले तो जले कैसे ,अपने कब्जे में ऱखने को तुम्हें बुझाते हैं |
ये शमा तू फिर भी जल , हर जोर जबरदस्ती के पार
एक क्षण में तो आँखें कर लेंगी सत्यम,शिवम ,सुंदरम का दीदार |
कृष्ण तवक्या सिंह
09.09.2020..