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गुरु के नाम - Anujeet Iqbal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

गुरु के नाम

  • 236
  • 5 Min Read

गुरु के नाम

छद्मवेशी संसार में
असंख्य कल्पों से तुमको ढूंढ रही हूं
और तुम स्वप्न संकेतों से
इस पथभ्रष्ट स्त्री को
अपने पास बुलाते

अनंत जन्म, अनंत वेश, अनंत खेल
पांव पड़ते रहे मेरे सदैव
नित्य नए मार्गों पर
कलेवर बदल बदल कर आत्मा विदग्धा है
जल चुकी हूं लाखों बार चिताओं में
लेकिन दृष्टि में तुम बने रहे
अदृश्य होकर
बंधन रहित हृदय के ब्रह्मांड में
आकाशगंगा होकर

मैं क्या हूं?
शायद तुम्हारा पुराना कमंडल
जो बार बार लगता रहा
विभिन्न मतावलंबियों के हाथ
हर नई जीवन यात्रा में

गुरुदेव, इस जन्म यात्रा में
तुम तक आना, जैसे
पूर्वकृत कर्मों का परिणाम और
भाग्य द्वारा निश्चित था
मेरे सब ‘प्रयत्न’ मन के भ्रम थे
‘अनायास’ तुम्हारे द्वारा नियोजित था

संसार का झींगुर रुदन
पीछे छूट रहा है और
स्वयं की स्मृति का मुक्तिद्वार
धीरे धीरे खुल रहा है
उस ओर एकांत स्वरूपता का
मंत्रोच्चार है
तुम्हारे साथ अज्ञात भाषा के संवाद का
‘ऋचागान’ है

तुम मेरे जीवन की तपती दोपहर के
वटवृक्ष बन चुके हो
जहां रुककर अब चलने को
कुछ शेष नहीं बचा है


अनुजीत इकबाल

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

क्या कहूँ निशब्द हूँ रचना पढ़कर इतना गहन इतना सुंदर लिखा है मैं मंत्रमुग्ध। हो गयी रचना पढ़कर।

Anujeet Iqbal4 years ago

इस तरह की प्रतिक्रिया लेखन को सार्थकता देती है। धन्यवाद आपका

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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