कवितालयबद्ध कविता
जूझ रहा हूँ आज यहाँ मैं
अपनी कथनी करनी से
किये हुए सब पाप पुण्य
बह रहे समय की झरनी से
अपना पराया कुछ मत पूछो।
पूछो उस झूठी बरनी से
भरती गयी जो धीरे धीरे
अब समझ आया करनी से।
पड़ा हुआ है शरीर यहां पर
तज कर निकला झरनी से।
सन्नाटे में गूंज रहा हूँ।
अपनी करनी भरनी से। - नेहा शर्मा