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यात्री गण अपने सामान का खुद ध्यान रखें - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

यात्री गण अपने सामान का खुद ध्यान रखें

  • 138
  • 10 Min Read

"यात्रीगण अपने सामान का 
खुद ध्यान रखें      
वरना आँसू बन बहने को
तैयार सब अरमान रखें "

यह अल्टीमेटम 
किसी आम बस 
या फिर रेल की तरह 
इस पर नहीं लिखा है

पर इस बचे-खुचे 
और लुटे-पिटे से
लोकतंत्र की पटरियों पर 
इस बुलेट ट्रेन सी सरपटाती, 
फड़फडा़ती, धड़धडा़ती

फर्राटेदार, धमाकेदार
" न्यू इंडिया एक्स्प्रेस " की 
हर एक चाल-ढाल में
उसके हर कमाल में
बस यही निहितार्थ छिपा है

अदृश्य स्याही से लिखे उन अक्षरों में
सोये दिलो-दिमाग की दहलीज पर
कड़वे सच की, हर दिन पड़ती दस्तकों में
बिना कहे ही समझने को है बहुत कुछ
मगर उसके लिए एक चैतन्य अद्भुत 
जरूरी है

हाँ, इस पत्रकारिता के नाम पर 
चलती चाटुकारिता के 
युग की यह मजबूरी है

चकचौंध से चमत्कार पे
करते नमस्कार से, 
कड़वे सच को नकारते, 
कर्तव्य को बिसारते

जनतंत्र के चौथे खंभे की
जडें इतनी खोखली हैं
सोच इतनी दोगली है

जो कहे मसीहा, वही ठीक
उसकी हर एक बात
लगती वेद-वाक्य

उसको आई जमुहाई, 
खाँसी या छींक
बन जाये जब ध्यान, समाधि 
या फिर दिव्य मंत्र

हाँ, लोकतंत्र बन जाये जब
जोकतंत्र या ठोकतंत्र
हाँ, जब गणतंत्र 
लगे ठोकने
बन गनतंत्र
या फिर लगे खरीदने
बनकर धनतंत्र
 
तो फिर इस हव्वा-हवाई की 
सारी कड़वी सच्चाई
का मन में अनुमान रखें
सँभालकर सामान रखें
अपना खुद ही ध्यान रखें
वरना आँसू बन बहने को
तैयार सब अरमान रखें

ऐसा ना हो जाये वरना, 
रोजगार के नाम पर
हाथ कटोरा आ जाये
रोजगार का जरिया
कल फिर 
सिर्फ पकौडा़ बन जाये
या हमें खड़ा कर लाइन में
कोई भगौड़ा भग जाये

"कल हम सब के लिए 
नौकरी अनगिन आये"
यूँ मन के लड्डू खाते-खाते
हाथ से रोजी छिन जाये
पेट से रोटी छिन जाये

स्मार्ट सिटी के अस्पताल
प्राणवायु को लगें तरसने
महँगाई बन रोज मुसीबत
आसमान से लगे बरसने
कट-कट करता कटकटाता
हर रोज दर को खटखटाता
अस्तित्व का नया संकट
अग्निपरीक्षा लेने सबकी
हर दिन आये

अधिकार के तैयार 
सब तीर कमान रखें
खुद ही अपना ध्यान रखें
संँभालकर अपना सभी
सामान रखें
वरना आँसू बन बहने को
अपने सब अरमान रखें

द्वारा : सुधीर अधीर

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Rajjansaral

Rajjansaral 10 months ago

अति सुन्दर, श्री मान आपका नम्बर मिलेगा??

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

सुन्दर रचना

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