लेखअन्य
जन्म लेते ही
मिठाईयां बांटी जाती है
ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं
कोई कहता है
हमारे खानदान का
वारिस आ गया
कोई कहता है
हमारे कुल का
तारनहार आ गया
कोई कहता है
हमारे मजबूत
कंधों का सहारा
आ गया
बड़ा होकर
इसे ही तो
सब संभालना है
कितनी सारी उम्मीदें
एक नन्ही सी
जान से लगा दी जाती हैं
जैसे जैसे वह बड़ा होता है
उसे पल -पल
एहसास कराया
जाता है
तू जल्दी से
बड़ा हो जा
फिर बहन की
रक्षा तुझे करनी है
मां पापा का
ख्याल रखना है
पुरखो का
तरन तारन करना है
यह सुनते- सुनते
मासूमियत न जाने
कहां खो जाती है
बड़े होने की चाह में,
जिम्मेदारियां ,
उठाने की चाहत में
घर छोड़ पढ़ाई करने
कहीं दूर जाना पड़ता है
दर दर भटक कर
नौकरी हासिल
करना पड़ता है।
फिर एक नई जिम्मेदारी
कंधे पर दस्तक देती है
पति ,पिता ,मौसा ,मामा
इन सबके बीच में
मैं कौन हूं !क्या हूं! क्यों हूं !
यह सोचने का
वक्त भी नहीं मिलता है
अपने लिए वो
कब सोचता है
आखिर मर्द है
उसे दर्द कहां होता है ।
हो भी तो ,किससे कहे
कहां तलाश करें
अपने हिस्से का सुकून जिम्मेदारियां
निभाते निभाते
टूटता चला जाता है
वो मर्द है ,साहब
उसे दर्द कहां होता है ।
आंख से आंसू
बहाने का भी
अधिकार नहीं है
मर्द को दर्द कहां होता है ।
उसे भी चाहिए
एक कोमल हथेलियां
जो उसे सहला सके
थक हार के घर आए
तो उसका दिल
भी बहला सके
उसके अंदर भी
दिल है
दर्द उसे भी होता है
कोई आंसू देख ना ले
पर मन ही मन वो रोता है
अंजनी त्रिपाठी
स्वरचित मौलिक