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जल की बूंदें - Swati Sourabh (Sahitya Arpan)

कविताबाल कविता

जल की बूंदें

  • 153
  • 4 Min Read

आज का विषय है बच्चों पर आधारित रचना, मै एक रचना प्रकाशित कर रही हूं जल की बूंदें ,जो शिक्षाप्रद भी है

जल की बूंदे

मचल रही थी जमीं से ही,उठने के लिए ऊपर की ओर,
राह देख रही थी सूरज का, ले जाएगा आसमां की ओर।
सैर करूंगी आसमान में,देखूंगी ना कभी धरा तेरी ओर,
ए जमीं जब उठ जाऊंगी ,तू देखते रहना बस मेरी ओर।।

उठने लगी जल की बूंदे,मिलने चली बादल की ओर,
इठला रही थी मानो ऐसे ,आना नहीं फिर धरती की ओर।
मिल गई कई बादलों से,फिर छा गई घटा घनघोर,
बातें करने लगी बूंदे आपस में,जाना होगा धरती की ओर।।

आए हैं हम जैसे ऊपर, वैसे ही नीचे अब जाना भी है,
जिसने हमारा अस्तित्व बनाया,उसका साथ निभाना भी है।
बरसना होगा बारिश बनकर,धरती की प्यास बुझानी भी है,
जिस धरा पर जन्म लिया,उसी मिट्टी में मिल जाना भी है।।

स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक

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Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत... खूब

Champa Yadav

Champa Yadav 4 years ago

बहुत.... सुन्दर

नेहा शर्मा

Swati Sourabh4 years ago

शुक्रिया मैम

प्रपोजल
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