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कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते - SHAKTI RAO MANI (Sahitya Arpan)

कविताछंद

कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते

  • 150
  • 3 Min Read

वो सिर्फ अपने लिए कहता,
तेरे बिन जिंदगी कुछ कम थी।
कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते
मेरी आंखे भी नम थी।

कभी कोशिश तो की होती
मुझको मुझसे ही चुराने की
“मुझसे” वहीं छोड़ गए तुम
सिर्फ़ कोशिश की मुझको चुराने की

तुम्हारे लिए तो सिर्फ वो बाते थी
जिंदगी सिर्फ़ तुम थी सिर्फ़ तुम थी
ये बातें अब मुझे ‌खामोश बनातीं है
तेरे बिन जिंदगी कुछ कम थी

कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते
मेरी आंखें भी नम थी।

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 4 years ago

बढ़िया

SHAKTI RAO MANI4 years ago

yup

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

bhut khub

SHAKTI RAO MANI4 years ago

धन्यवाद

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