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उसका होना - Anujeet Iqbal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

उसका होना

  • 262
  • 5 Min Read

उसका होना

उसके नाम की प्रतिध्वनि
किसी स्पंदन की तरह
मन की घाटी में
गहरी छुपी रही
और मैं एक दारुण हिज्र जीती रही

वेदना, व्याकुलता के मनोवेगों में
त्वरित बीजुरी की तरह उसका प्रतिबिंब
हवाओं में कौंध जाता
और आंखों की मेड़ें
नेत्रजल को तिरस्कृत कर देतीं

मेरे ध्यानाकर्षण के लिए
उसने छोड़ी थीं
ब्रह्मांड में असीम संभावनाएं
तब, शब्दातीत बोल सुनकर
प्रस्फुटित हुई प्रेम की पहली कली
जिसकी सुवास
मेरी पर्णकुटी से उठकर
महकाती रही सारे अरण्य को

वो प्रेयस
अनिद्रा को भी उत्सव बना देता
और उसकी परोक्ष उपस्थिति
अंतःकरण में उठी रहती
किसी संगीत कोविद के आलाप की तरह

उसके संग सहचार का वहन
शब्द, अर्थ, विवेचनाएं
या भाषा के यान
कभी न कर पाए
और मैं निश्चल, निमग्न
समय की नदी में पैर डुबाए
कोशबद्ध करने का दुःसाहस करती रही
उसके अनुराग की पांडुलिपि को
जो आकाश से भी अधिक विस्तृत थी

अंततः एक दिन
‘मेरे होने’ के वृहत पर्वतश्रृंग
विध्वंसित हो गए
और शेष बचा रह गया
एक जंगली श्वेत पद्म


अनुजीत इकबाल
लखनऊ

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

👌🏻

Anujeet Iqbal3 years ago

❤️

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अत्यंत सुन्दर

Anujeet Iqbal3 years ago

वाजपेयी सर,आभार, शुभकामनाएं

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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