कविताअतुकांत कविता
इत्तेफाक है महज़, मुझसे मिलना तेरा
मैं खिलखिलाती सुबह, तू घनी रात का डेरा,
मैं गुनगुनाती धूप, तू तम-स्याह का घेरा
मैं आस की किरण, तू निशा-तृष्णा का बसेरा,
नहीं जानता मुस्कुराना, गीत गाना, गुनगुनाना
मैं सुकून भरी रात, तू आंसू का सिरहाना,
मिल ही जाता है सरेराह, जिधर भी जाती हूं
मुस्कुरा कर फिर भी तुझे हराती हूं,
सारे जहां की खुशियां तुझ पर वार दूं तो भी कम है
क्योंकि तू ग़म है.. ।