कवितालयबद्ध कविता
हूँँ मैं नारी !
नारी हूँँ और अभिमान है इसका मुझे
कहलाती हूँँ जगत जननी!
करती हूँँ सम्मान सबका
चाहती हूँँ..... सम्मान सबका!
रखती हूँ ख्याल सबका
करती हूँँ फर्ज पूरा....
सुनती हूँँ सबकी !
करती हूँँ अपने मन की....
पता है मकसद मुझे !
जानती हूँँ करना क्या है
खुश रखती हूँँ खुद को....
जरूरत नहीं मुझे किसी की
खड़ी हूँँ अपने दम पर....
दे सकती हूँँ सहारा किसी को भी !
चाहते हो साथ मेरा.....
तो..... रखना दर्जा बराबर का !
उलझोगे मुझसे तो फिर......
अजंमा के लिए भी तैयार रहना !
हूँँ मैं दुर्गा ! हूँँ मैं काली !
करी हूँँ वध महिषासुर का...
बन जाऊँँगी द्रोपदी !
कर दूँँगी सर्वनाश....
तुझे.....जैसे दुर्योधन का !
मिटा दूँँगी कुल तेरा
कर दूँँगी निस्तोनाबुद तुझे !
मत समझ मुझे
कोमल नारी....... !
हूँँ अंदर से चट्टान
की तरह.....
अगर टकराओगे
मुझसे तो... खो दोगे खुद को !
अगर आओगे कृष्ण बनकर तो
तो पाओगे मुझे राधा की तरह....
जरूरत नहीं मुझे
किसी की......
कर सकती हूँँ रक्षा अपने स्वाभिमान की !
हूँँ मैं नारी ! और अभिमान है इसका मुझे !
चम्पा यादव
26/08/20