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'आइए, मन के सूरज को जगायें।'
सुप्त पड़े दिल के तारों को झंकृत कर दें,
आइये, हर दिल को खुशियों से अलंकृत कर दें...।
सावन का मौसम आने वाला है। सूरज की गरम उष्मा के बीच बारिश की बूंदे तन को राहत देती है। लेकिन हमें तन के साथ-साथ मन की उष्मा को जगाना भी आवश्यक है। अपने अंदर के सूरज को जगायें। यह उल्लास का माह है। यह अलग बात है कि महामारी के दौर में इस वर्ष हम अपने त्योहारों को उतनी प्रफुल्लता के साथ नहीं मना पा रहे हैं, जितना हमेशा से मनाते आए हैं। संक्रमण का भय, अकाल मृत्यु का शोक, पिछले कई महीनों में मानव जीवन में हुई उधलपुधल ने हमारे जीवन को अवसाद से भर दिया है। यह पहला अवसर है जब हम महीनों से घरों में कैद हो गए हैं और अपने सामाजिकता के अधिकार का भरपूर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। नैराश्य तो स्वाभाविक है, यूं भी मानव स्वभाव ज़रा सी बात पर प्रसन्न और थोड़ी सी में दुखी होने वाला है। परंतु अब सामंजस्य बनाने का वक्त आ चुका है। अपने अंदर की रोशनी को जगाना है। आइए, दीपों की अवली बनकर एक दूसरे के जीवन को रोशन करें । चिराग तले अंधेरा होता है परंतु एक दिया दूसरे को रोशनी प्रदान करता है। सुख-दुख बांटना सीखें। किसी के जीवन में खुशी लाकर देखें। जरूरतमंद की सहायता करके देखें। असीम आनंद की प्राप्ति होगी। अवसाद अवश्य ही दूर भाग बैठेगा। छोटे-छोटे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लाने का प्रयास करें। अपने अंतः में सुप्त पड़े ज्ञान और विवेक को जागृत करें। विघ्नहर्ता स्वरूप ईश्वर सबके कष्टों को दूर करेंगे। सावधानी और सौहार्द के साथ जीवन का आनंद लीजिए। योग -शोक रहित जीवन की आशा के साथ....
अमृता पांडे
समयानुकूल महत्त्वपूर्ण लेख👏👏👍
धन्यवाद मीता जी।
बहुत अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर 🙏🏻
पढ़ते रहिए। अच्छा महसूस करते रहिए।😊
बहुत सुन्दर और आज की स्थितियों में प्रेरणादायक..!
धन्यवाद सर, आपकी प्रतिक्रियाएं मेरा उत्साहवर्धन करती हैं।