कवितालयबद्ध कविता
फिर मन करता है
इस शहर की तंग गलियों से,
मुझे बहुत डर लगता है।
यहाँ की हवाओं में जहर ,
कोरोना का हरदम उड़ता है।
इन तन्हाइयों, सन्नाटो में ,
मेरा मन बहुत ही घुटता है।
गुमनाम सी हो गयी जिंदगी,
मुझे इससे बहुत डर लगता है।
मुक्त गगन में उड़ने का,
मेरा मन फिर करता है।
वर्षा में छाता लेकर घूमने का,
मेरा मन फिर करता है।
बच्चों की तरह खिलखिलाने का,
मेरा मन फिर से करता है।
बच्चों की तरह शोर मचाने का,
मेरा फिर से मन करता है।
थक गयी हूँ तकते इन दीवारों को,
इस अकेलेपन से डर लगता है।
लंबी एक ड्राइव पर जाने का अब,
मेरा मन बहुत ही करता है।
स्कूल फिर से खुल जाने का,
सबका मन फिर से करता है।
दोस्तों के साथ मिलकर खेलना,
बच्चों को अच्छा लगता है।
गोलगप्पे ठेले से खाने का अब,
मेरा मन कितना करता है ।
दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाने का ,
सताने का उन्हें फिर मन करता है।
इस मरघट सी शांति से अब,
मेरा दम बहुत ही घुटता है।
पहले जैसा जीवन जीने का,
मेरा मन फिर करता है।
स्वरचित रचना
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड