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चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐 - सीमा वर्मा (Sahitya Arpan)

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चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐

  • 207
  • 14 Min Read

# शीर्षक #
चिरकुमारी... कल्याणी राए 💐💐
भाग ...३
सरकारी बंगले के बरामदे में रखे आराम कुर्सी पर बैठ कल्याणी राए ने पीछे सर टिका लिया ।
पीऊ के हाते से बाहर निकल चुकी है।
आखें बन्द करते ही यादों का भरा- पुरा भण्डार खुल गया था ।
याद आया उन्हें शायद आश्विन का महीना था जब वे नन्ही पीऊ की उगलियाँ थामें हुए बोलपुर स्टेशन पर पँहुची थी जहाँ से आगे के लिए गाड़ी पकड़नी थी ।
शाम का समय सूर्य की किरणें सीधे पेड़ पर उतर रही थी प्लेटफार्म पर हल्की भीड़ थी ।
थर्टीन अप लेट थी और परेशान सी पीऊ उनकी गोद में सर छिपाए बैठी थी घुँघराले बाल गाल पर बिखरे थे ।
आज उसके बाल कितने लम्बे हो गए हैं चौदह बर्षीय पीऊ अब निखरने लगी है केसर और गुलाब की सी मिलावट वाली रंगत सुन्दर काली गहरी आखें लम्बा कद, लम्बे घने बाल कुल मिला कर एक भावुक और संवेदनशील किशोरी जिसके पास वो सब कुछ जो किसी का भी दिल धड़काने को काफी है ।
पीऊ अक्सर सोंचती, वह आठ साल अपने घर बोलपुर में रही है जहाँ मां के साथ कितना सुकून था हर कुछ था घर में और सबसे ज्यादा था मनमौजी बने रहना पर जब से मासी मां के साथ आई है। लगता है पर ही कुतर गए ।
चुलबुले पन की जगह समझदारी ने ले ली है भोले बचपन की जगह अक्लमंदी ने ।
वहाँ अल्हड़पन और बेख्याली थी यहाँ अनुशासन ।
अनुशासन प्रिय कल्याणी पीऊ को लेकर हर वक्त फिक्रमंद रहती उसनें पीऊ का ऐडमिशन कलकत्ते के नामी-गरामी स्कूल में करवा दिया था जहाँ मैत्री ही उसकी एक मात्र सहेली बनी है ।
दोनों ने पहले ही दिन से पेंसिल से लेकर अपने खट्टे मीठे सारे अनुभव शेयर किए थे । क्लास बँक करने से लेकर एक्सट्रा कलास तक का सफर दोनों सहेलियों ने साथ ही हंसते - हंसते तय किया था ।
दोनों साथ ही ट्यूशन भी साथ जाती । पीऊ अपनी मां समीरा की तरह ही कुशाग्र बुद्धि की है इसलिए ट्यूशन जाना उसके लिए मजेदार हुआ करता है । स्कूल के इग्जाम्स शुरू होने वाले हैं और पीऊ पढ़ाई पर बहुत ध्यान दे रही है , चाहे पूरी दुनिया इधर की उधर हो जाए उसका ध्यान नहीं हटता था पढा़ई से ।
वह नौवीं कक्षा में पढ़ती है यों उसकी उम्र अभी इश्क - मुहब्बत के लिए नाकाफी है फिर भी आकर्षण पैदा होने के चांसेज तो रहते ही हैं इसकी कोई सीमा रेखा तो खिंची नहीं होती ।इसी को मद्देनजर रख कल्याणी की कड़ी नजर उस पर बराबर बनी रहती ।
पीऊ भी वक्त के झंझावातों को झेलती अपनी उम्र की लड़कियों की अपेक्षाकृत बेहद सुलझी हुई है ।
उसकी उड़ान को कोई छू नहीं सकता था । आजाद पंछी ,स्वच्छंद हवा ,बहती नदी और साफ आसमान उसे अभी से ही समझ में आने लगे हैं ।
उस दिन क्लास के एक सहपाठी विक्रम ने जब साथ चलते हुए हस्तलिखित पर्ची के साथ गुलाब के फूल पकड़ाए तो उसने रुक कर पूछा , " इसे मैं क्यों लूँ ? विक्रम ने मुस्कुरा कर कहा ,
तुम मुझे अच्छी लगती हो और मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ " ।
फिर तो पीऊ ने रूखाई दिखाते हुए कहा , " मैं तो सबको अच्छी लगती हूं तो क्या सबसे दोस्ती कर लूँ ?
मुझे तुमसे दोस्ती तो क्या दुश्मनी भी नहीं करनी ।
और वो पर्ची उसने जा कर मासीमां को दे दी थी , यद्यपि कि कल्याणी ने विक्रम पर कोई कारवाई नहीं की पर वे पीऊ को ले कर मन ही मन कहीं आश्वास्त हो गई थी ।
क्रमशः ...

सीमा वर्मा

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Anjani Kumar

Anjani Kumar 3 years ago

बहुत अच्छी जा रही है कहानी

सीमा वर्मा3 years ago

जी हार्दिक धन्यवाद

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

कहानी बहुत सुंदर जा रही है।

सीमा वर्मा3 years ago

जी आपका बेहद धन्यवाद

सीमा वर्मा3 years ago

जी आपका हृदय से धन्यवाद नेहा जी

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर रचना

सीमा वर्मा3 years ago

जी हार्दिक धन्यवाद

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