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छह अंको में समाप्य लम्बी कहानी
#शीर्षक
चिर-कुमारी ... कल्याणी राए 💐 अंक १
कलकत्ते मेंं जुलाई की उमस भरी शाम कल्याणी अपने चार कमरे वाले विशाल सरकारी क्वार्टर की छत पर खड़ी सामने पसरे सन्नाटे को देख रही थी ।
उसकी पुरानी और अतंरग सहेली समीरा ने उन्हें फोन कर आज और अभी तुरंत मिलने बुलाया है ।
जिसके बाद से ही वह बेचैन हो उठी है । उसकी अपनी जिन्दगी बिल्कुल सीधी सपाट चल रही है ।
४७ की उम्र पार कर रही कल्याणी जीवन के उस मोड़ पर खड़ी है जहाँ से पीछे मुड़ देखने का सवाल ही नहीं है ।
अपने मन की सरहदें उसने बहुत मुश्किल से बांध रखी है लेकिन फिर भी दिल आखिर कहां मानता है ?
समीरा की पुकार पर अगले ही दिन वो समीरा से मिलने चल पड़ी ।
रास्ते में उसका विश्व विधालय पड़ता है।
कभी जिसमें वे समीरा और राघव साथ पढ़ा करते थे ।
दिन के बारह बज चुके हैं तेज धूप है लेकिन परवाह ना करते हुए कल्याणी उसी झुरमुट के पास जा पंहुची थी जहाँ वे समीरा और राघव साथ में मिल अध्ययन किया करते थे , मगर आज सब बेरंग था ,
कभी यही पेड़ों के झुरमुट उसे स्वप्न लोक से लगते थे वह मीठे स्वर में गुनगुनाती और राघव एवं समीरा सुना करते ।
" आमार प्राणेर आराम
मोनेर आनंद
आत्मार शान्ति "
गलत बिल्कुल गलत कैसा आनंद और कैसी शांती ?
राघव ने तो उसे छोड़ समीरा से विवाह कर लिया ।
वह गर्मी की छुट्टियों में घर आई हुयी थी कि वहीं उसे राघव और समीरा के विवाह का निमंत्रण पत्र मिला ।
फिर कल्याणी ने ना किसी से सफाई मांगी और ना ही कोई पुराना फलसफा दोहराया ।
वैसे भी हालात उसके विपरीत थे उन पर पुराना अनुभव लादा नहीं जा सकता ।
वो समझदार और पढ़ने में तेज थी । उसने मेहनत कर इस सरकारी नौकरी को पा लिया था तथा पोस्टिंग ले कर वहाँ से दूर चली आई थी ।
बाद मे मां बाबा के बहुत कहने पर वह शादी के लिए तैयार भी हो गई थी लेकिन हाए री उसकी किस्मत ने उसे फिर यहाँ धोखा दिया ।
विवाह प्रस्ताव आने पर वह घर तो गयी थी ।
लेकिन होने वाले जंवाई ने उसकी जगह उसकी छोटी बहन हेमा की चपलता देख उसे पसंद कर लिया ।
तब कल्याणी ने खुशी से इस प्रस्ताव को स्वीकार कर फिर कभी विवाह ना करने का निश्चय कर वापस नौकरी ज्वाएन कर लिया ।
अतीत को दफना और वर्तमान को झेल कर वह नयी जिन्दगी में मुश्किल से ऐडजस्ट कर पाई थी ।
बीते समय में उन्हें इधर - उधर से पता चला करता था राघव ने समीरा को छोड़ विदेश का रूख कर लिया था ।
यह भी कि उन दोनों की बहुत ही प्यारी सी एक बच्ची है जिसका नाम ' पीऊ ' है ।
और फिर ये भी कि समीरा किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गई है।
फिलहाल वह बोलपुर पंहुच वह समीरा की उस कोठी नुमा पुराने घर के गेट खोल कर ठिठकी हुई सी चल रही है।
मेन डोर की कौलबेल बजाते ही दरवाजा एकदम से खुला और एक प्यारी बच्ची जिसके नन्हे-नन्हे घुंघराले बाल बिखरे हुए हैं उसके पास दौड़ती हुयी आई ।
उसके हाँथ पकड़ उसे लगभग खींचती हुए अन्दर कमरे में ले गई ,
" माँ माँ मासी आ गई आँखें तो खोलो माँ "
मरणासन्न समीरा ने बामुश्किल आँखें खोलीं और पीऊ के हाथँ उसके हाथों मे पकड़ा दिया था ।
उसे देखते ही कल्याणी समझ गई थी ।
इसके जीवन का मेला अनादि मेले से मिलने को आतुर हुआ चाहता है ।
उसने चारो तरफ नजर घुमाया पुरानी फोटो और ऐलबम बिखरे हुए हैं ।
फोन की घंटी लगातार बज रही थी। उसने मन ही मन कुछ निर्णय ले त्वरित गति से पीऊ के हाँथ कस कर पकड़ घर से बाहर निकल गई थी ।
इस घटना के कुछ बर्षों के पश्चात आज रविवार की छुट्टी है कलकत्ते में अपने सरकारी बंगले के बरामदे में राकिँग चेयर पर बैठी " चिर कुमारी " कल्याणी राए अपनी दत्तक पुत्री पीऊ राए के साथ बैठी बातचीत करती हुई चाए पी रही हैं ।
क्रमशः ...
सीमा वर्मा
Seema.anjani07@gmail.com
कहानी का पहला भाग ही शानदार है 👌🏻
जी हार्दिक धन्यवाद आगे पढ़ें और भीअच्छी लगेगी लगेगी