कहानीलघुकथा
मौसम बेईमान हो रहा हैं... काली घटाएं रह रह कर फिर से घिरने लगी हैं। और इस बार जब बारिश होगी तो दोनों खूब भीगेंगे। तुम बारिश में और मैं तुम्हारीं यादों में.....
मेरे लाख मना करने के बावजूद तुम हमेशा की तरहा फिर छत पर भिगनें जाओगी। फिर से तुम्हारी वहीं शरारतें शुरु होगी। भीगी छत पर दौड़ते हुए तुम यह भूल जाओगी कि अगर पैर फिसल गया तो तुम्हें चोट भी लग सकती हैं।
तुम्हारा ख्या़ल भी मुझे रखना पड़ता हैं और तुम्हें बच्चों के जैसे समझाना,और संभालना पड़ता हैं। पर तुम नादानियां करती रहती हो और फिर बडे़ प्यार से जब कहती हो साॅरी.......... तो सच मानों बेहद प्यार आता हैं तुम पर कि तुम्हारा माथा चूम लुं.......
तुम्हें पता हैं मैंने पहली बार जब तुम्हें देखा था.... तब तुम बारिश में भीग रही थी। तुम्हारे चेहरे को छूकर जो बारिश गिर रही थी तो ऐसा लग रहा था कि........ किसी फूल पर ओंस की बूंदे ठहर कर लुढ़क रही हो जैसें....
आज भी जब वह याद करता हूँ कि ऐसा लगता हैं कि उस दिन बारिश में तुम थी पर भीग मैं रहा था... तुम्हारें रंग में.... और तब से लेकर अब तलक मैं रह रह कर भीग ही रहा हूँ उस लम्हें में। और शुक्रगुजार हूँ उस बारिश का जिसने मुझे तुम से मिला दिया।
और जब मैं तुम्हारें शहर से जाना वाला था उस दिन तुमनें जिद्द करके पुरा शहर घुमाया था और वो भी स्कूटर पर ....... घर लौटते वक्त बारिश आ रही थी और इस बार हम साथ में भीग रहे। हमेशा इतना शरारतें करनी वाली लड़की आज चुपचाप बारिश में भीग रही थी....... या यूँ कहूँ कि वो भीग चुकी थी किसी के प्यार में हमेशा के लिए.....
सुबह के 4 बज चुके हैं...... यहाँ आज भी बारिश हो रही हैं पर तुम पास नहीं हो.....पर हमेशा मेरे ख्यालों में रहती हो और रहोगी। ये फासलें बस यूँ ही हैं......जल्दी मिलेंगे और जब हम मिलेंगे तब बारिशें होगी।
ये मैसिज तुम्हें इसलिए किया हैं कि जब सुबह उठकर तुम फोन संभालो तब तुम्हारें चेहरें पर प्यारी सी स्माईल आए। और जब यहाँ बारिशें हो तो तुम हमेशा कि तरहा फिर छत पर जाओ भिगनें और महसूस करना उन बारिशों में कि मैं हमेशा तुम्हारें पास हूँ।
सु मन ( जै'स'मीन)