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"तेरे महलों को छूकर आती धूप" - Poonam Bagadia (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

"तेरे महलों को छूकर आती धूप"

  • 314
  • 3 Min Read

शीर्षक : "तेरे महलों को छू कर आती धूप"

तेरे महलों को छू कर आती धूप
मेरी झोपड़ी के आंगन सोती है

एक शुकुन भरी नीद ले कर
अलसाई सी अंगड़ाई लेती है

तू महल से, कभी झाँक तो जरा
झोपड़ी में रौनक कितना जगाती है

तेरे बन्द दरवाजे का सुनापन
मेरी झोपड़ी में मेले लगाती है

ऐशो आराम घने, तेरे महलों में
दर्द से मेरी झोपड़ी मुस्काती है

नही थाम सकती, तू हाथ मेरा
ये झोपड़ी, औकात मेरी बताती है

तू खुशियों में गरीब है, मुझ से
भीगी पलके ये तेरी, बताती है

तेरे महलों को छू कर आती धूप
मेरी झोंपड़ी के आंगन सोती है

©️ पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित व मौलिक रचना

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 4 years ago

अच्छा लिखा

Poonam Bagadia4 years ago

जी शुक्रिया...

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

बहुत ख़ूबसूरत कोमल एहसास..!!

Poonam Bagadia4 years ago

बहुत बहुत शुक्रिया सर...

Mohammad Afroz

Mohammad Afroz 4 years ago

बहुत बढ़िया लिखा है आपने

Poonam Bagadia4 years ago

शुक्रिया अफ़रोज़ जी...

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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