कविताअतुकांत कविता
शीर्षक : "तेरे महलों को छू कर आती धूप"
तेरे महलों को छू कर आती धूप
मेरी झोपड़ी के आंगन सोती है
एक शुकुन भरी नीद ले कर
अलसाई सी अंगड़ाई लेती है
तू महल से, कभी झाँक तो जरा
झोपड़ी में रौनक कितना जगाती है
तेरे बन्द दरवाजे का सुनापन
मेरी झोपड़ी में मेले लगाती है
ऐशो आराम घने, तेरे महलों में
दर्द से मेरी झोपड़ी मुस्काती है
नही थाम सकती, तू हाथ मेरा
ये झोपड़ी, औकात मेरी बताती है
तू खुशियों में गरीब है, मुझ से
भीगी पलके ये तेरी, बताती है
तेरे महलों को छू कर आती धूप
मेरी झोंपड़ी के आंगन सोती है
©️ पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित व मौलिक रचना
बहुत ख़ूबसूरत कोमल एहसास..!!
बहुत बहुत शुक्रिया सर...
बहुत बढ़िया लिखा है आपने
शुक्रिया अफ़रोज़ जी...