कहानीहास्य व्यंग्य
हमें खाना बनाते बनाते 2 या 3 दिन गुजर गए। रोज टिफिन पैक कर सुबह शाम जिज्जी के घर पहुंचाते पहुंचाते हम बेस्ट टिफ़िन डिलीवरी वोमन बन गए थे। आज भी खाना बना बच्चों की राह देख रहे थे। पर बच्चे नही आये। खैर हम खुद ही टिफ़िन पैक कर बढ़ चले जिज्जी के घर की तरफ, थोड़ा बाहर निकले ही थे कि एक चाची मिल गयी रस्ते में आवाज लगाकर बोली
“कँहा भागे जा रही है शशि आजकल दिखती ही ना है, बहुत बिजी होगयी है का”,
शशि- “प्रणाम चाची”
चाची “प्रणाम बेटा जीती रह तेरा सुहाग जीता रह 100 लड़कों की अम्मा बने। (कुछ ऐसा से बच्चों फैक्ट्री खोलने के जैसा सा आशीर्वाद चाची ने दे दिया था। वैसे इन चाची से ज्यादा फेमस इनके आशीर्वाद होते हैं।) ये टिफ़िन लेकर किधर चली शशि।
हमने चाची के पैर छूकर ऊपर उठते हुए कहा। कुछ नही चाची जिज्जी के पैर में चोट लग गयी थी तो उन्ही का टिफ़िन लेकर जा रही हूं।
चाची- “कब, कैसे???? मुझे तो वो कल बाजार में मिली उसने कुछ बताया ही ना बल्कि इतना सारा सामान खरीदकर लेकर गयी वो, खूब सारी बात करी हमने जब भी नही बोली वो चोट कब लगवा ली उसने अच्छा आज सुबह लग गयी होगी हो सकता है, चल अच्छा हुआ तूने बता दयी, कल जाकर पता ले आउंगी मैं। अच्छा अब चलूं तेरे चाचा इंतज़ार कर रहे होंगे। तुझे तो पतो ही है उस खड़ूस बुढ़ऊ का दिमाग।
कहकर चाची शशि के सिर पर हाथ फेरकर चली जाती है।
शशि गाना गुनगुनाते हुए जिज्जी के घर की तरफ बढ़ने लगती है।
“तेरी आंख्या का यो काजल मैने करे से गोरी घायल तू सहज सहज पा धर ले मेरा दिल धड़कावे पायल।-नेहा शर्मा
जब जिज्जी के घर शशी जी पहुंचेगी कोई नया नाटक निश्चित ही आरम्भ हो जाना है..!!