कहानीहास्य व्यंग्य
जिज्जी जोर जोर से दरवाजा पीट रही थी, हमें लगा पता नही कौन सा भूकम्प आगया है, जैसे ही दरवाजा खोला, जिज्जी सब पिछली शॉपिंग के साथ दरवज्जे पर खड़ी थी,
इससे पहले कुछ बोलते या मुँह खोलते भानु कमरे से निकल आये।
“ऐ जिज्जी छोटी छोटी बातों पर मुँह फुला लेती हो, तुमको समझाए के खातिर ही तो फोन किये थे, तुम ताम तमुड़ा इहा काहे उठा लायी,”
अब जिज्जी वापस मगरमछ के आंसू बहाती हुई,
तू बदल गया रे भानु, बीवी का गुलाम होगया है, शादी से पहले हम कुछ भी बोले झट कर देता था, अब बीवी सीखा पढा देती है, तो हमारी शॉपिंग भी तुझे खटक गयी, ये रहा तेरा सामान (टेबल पर पटक देती है।) तुझे ही मुबारक,
हम मन ही मन सोच रहे थे, अब कौन सी सिखाई पढाई होगयी, कालेज छोड़े तो जमाना होगया हाँ लिखते जरूर है वो भी डायरी, पता नही जिज्जी ये सिखाई पढाई क्यों बोल रही है, हाये दैया कहीं हमारी डायरी तो नही मांगेगी अब ये, हम मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगे हमारी इज़्ज़त हमारी डायरी बचाने की, परन्तु मामला कुछ और ही था।
भानु बोल ही रहे थे, “ऐ जिज्जी तुमसे बढ़कर कुछ हो सकता है क्या, तुम समझदार हो, (हम मन ही मन सोच रहे थे भानु को जिज्जी किधर से समझदार दिख रही हैं हाँ हो सकता है दिमागी घोड़े ज्यादा दौड़ाती हो तो उसी को कह रहे होंगे।) जिज्जी तुम्हरे भाई ने तुमको हमेशा जो मांगा वो दिया। पर उसके भी खर्चे बढ़ रहे है, तुम समझो थोड़ा सोच समझकर खर्चे करवाओ,”
ऐ भानु शशि की भाषा मत बोल, सीधे सीधे कह काहें नही देता, की जिज्जी तुम्हारा खर्चा हम नही उठा सकते, हम चुपचाप चले जायेंगे, एक शब्द मुँह से नही निकालेंगे,
अब तक भानु समझ चुके थे, की दीवार में सिर मारेंगे तो सिर अपना ही फूटेगा तो सारे हथियार डाल, बोल पड़े,
“ऐ जिज्जी माफ कर दो, अब कुछ नही बोलेंगे, माफ कर दो न, देखो ये साड़ी तो बहुत ही सुंदर ली तुमने तुम पर खूब जचेगी,”
जिज्जी खुश होकर
“हाये सच्ची, चल ठीक है मैं पहनकर आकर दिखाती हूँ तुझे,”
कहकर जिज्जी तो निकल ली, हम खड़े होकर सोचे जा रहे थे कि कहां जाकर सर फोड़े अपना, ना जिज्जी सुधरेंगी, ना हमारा पीछा छोड़ेंगी।-नेहा शर्मा