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तपता सूरज - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

तपता सूरज

  • 220
  • 18 Min Read

आलेख:-सोमवार गद्य
प्रतियोगिता

*तपता सूरज*

''सूरज हुआ क्रोधित,,,
आग उगलने लगा,,,,
आसमाँ भी आज देखो जलने लगा,,,"
जी हाँ 'सूरज हुआ मद्धम' गीत भूल जाइए। अब तो सूर्यदेव ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं।
यूँ तो साक्षात देवता ये ही हैं। अन्तर्मन से स्मरण करने से तुरंत प्रार्थना स्वीकार कर लेते हैं। कुँवारी कुंती ने याद भर किया और कर्ण की माँ बन गई। अरे भई प्रभु तो तैयार ही रहते भक्तों की पुकार सुनने। समझदारी तो हम इंसानों में होनी चाहिए। ऐसे कर्मशील व अनुशासनप्रिय देवता को रुष्ट भी हमने ही किया है। अब उनके कोप का भाजन भी हमें ही बनना होगा। और हम अपने साथ अन्य जीव भी सजा भुगतने को मज़बूर हैं । कभी कवि उगते सूरज का गुणगान किया करते थे,,,,,,
सूरज ने आँखें खोली
उषा की किरणें फ़ैली
रात लगे सबको मैली
सुबह लागे है उजली
परन्तु इन मोहक बातों का ज़माना अब कहाँ।
गुनगुनी धूप में बैठना ही भूल गए हैं। सुबह होते ही सूर्यदेवता लगते हैं आग बरसाने। वैश्विक तापमान अपने उच्चस्तर पर पहुँच चुका है। आगे क्या होगा, कहा नहीं जा सकता।
आज से इक्कीस वर्ष पूर्व जापान में एक सौ बावीस देशों का सम्मेलन,वैश्विक तापमान वृद्धि पर विचार विमर्श हेतु हुआ था। अत्यंत ही चिंताजनक भविष्य सामने था। तमाम प्रयासों के बावजूद इसे रोका नहीं जा सका। आज उपमान बदल चुके हैं। उगता सूरज मानो अस्ताचल में चला गया है। रह गया है तपता सूरज। हाँ मानते हैं यह ताप , वर्षा भी लाता है, जीवन के लिए।
हालात बड़े विस्मयकारी हैं। विश्व के अन्य यूरोपीय देशों तथा अमेरिका आदि में बर्फ़बारी का दौर है। और अफ़्रीका, भारत पाक आदि भीषण झुलसाने वाली गर्मी का सामना कर रहे हैं। तापमान 34 डिग्री सेल. के पार पहुँच चुका है।
अभी तो सुहाना चैत्र ही चल रहा है और बिन बुलाए ही यह जेठ आ गया। मार्च में ही मई का एहसास हो गया।
इन तमाम हालातों का ठीकरा हम सूरज के सिर पर फोड़ रहे हैं। सूरज का तो स्वभाव ही है तपना, तो "तपता सूरज" कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
यूँ भी सूरज हाइड्रोजन से बना आग का गोला है। शनैः शनैः हीलियम के साथ मिलने से यह गोला और भी आग उगलने लगा है।
ग्लोबल वार्मिंग अपनी हदे पार कर चुका है। पूर्व सदी में 0.8 डिग्री से. तापमान बढ़ा है। 1983--91 के वर्ष सबसे गर्म दर्ज़ हुए। मुख्य कारण है ग्रीन हाउस गैस
जो कार्बनडायऑक्साइड व मीथेन गैस का मिश्रण है। यह खतरनाक गैस बेल्ट, पृथ्वी को प्राप्त सूर्य उष्मा को पृथ्वीतल से बाहर जाने में बाधक है। अतः धरती चूल्हे पर चढ़े तवे सी तप रही है। और दोष सूरज को दिया जा रहा है।
दूसरा कारण है हमारे वायुमंडल की दूसरी परत समताप मंडल में स्थित ओजोन परत का छिद्रित होना। ओजोन परत, सूर्य से आती हानिकारक पराबैंगनी किरणों को रोकती हैं।
ग्रीनहाउस गैस व छिद्रित ओजोन परत के कई दुष्परिणामों से बचने के लिए अपनी आरामतलब सुविधाओं का परित्याग करना होगा। बिजली व बिजली उपकरणों तथा रेफ्रिजेशन क्रियाओं का त्याग, अग्निशमन यंत्रों का कम उपयोग, जल का सुनियोजित उपयोग, अन्य साधनों के स्थान पर सायकल या पैदल यात्रा, प्रदूषण पर नियंत्रण, जंगल में बढ़ोतरी आदि का अनुसरण करना होगा। अर्थात मटके का पानी, ज्वार मक्का की धानी, घर में बने शर्बतों की कहानी, सिल-बट्टे की ना सानी, झाड़ू पोछा करो रानी,,, की ओर मुड़कर देखना होगा। पुनः नीम पीपल की छैया में झूले डालने होंगे। अरे! सबसे पते की बात भास्कर बाबा को ऊर्जा को उसके प्राकृतिक में उपयोग करो,,,,खाना बनाओ , घर को रोशन करो और पैसे बचाओ।
हम सूर्य को दोष ना दें। क्यूँ न प्रयास करें? वरना तापमान बढ़ने से हिमखंड आइस- केप आइस-शीट ऐसे पिघलते रहेंगे, सागर उफनकर सुनामी लाएँगे, नदियाँ सूख जाएंगी, बीमारियां बढ़ेगी,,,और भी ना जाने क्या क्या जलजले आएँगे।
आइए सूर्यदेव को प्रार्थना से शांत करें।
एहि सूर्य सहस्त्रांशों
तेजोराशे जगतपते
अनुकम्प्य माम भक्त्या
तेषां शंभु प्रसीदति
जय सूर्यदेव शांत भव
सरला मेहता
स्वरचित
इंदौर

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बिलकुल सही।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बढिया 👌🏻

समीक्षा
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