कविताअतुकांत कविता
डॉ. शिव प्रसाद तिवारी "रहबर क़बीरज़ादा"
इन्साफ़ बानो की चीख़
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मैं राम को नहीं जानता,
नहीं जानता मैं किसी इन्सान को।
मगर मैं जानता हूँ इन्सान को।
और उसकी बहन
इन्साफ़ बानो को।
वो मेरे पडोसी हैं,
ऐसे तो मैं
नहीं जानता उन्हें।
उनको मेरा जानना-
एक घटना के कारण है।
जिसका मैं गवाह हूँ,
एक चश्मदीद गवाह।
बहुत पुरानी बात है,
मेरे गाँव में एक हमलावर आया था।
कहते हैं उस पर रावण का साया था।
हमलावर ने लूट लिया गाँव को,
और सारा माल भर ले गया।
शैतान इन्साफ़ बानो को-
साथ हर ले गया।
इन्साफ़ बानो चीख़ी थी,
अन्दर से बहुत तड़पी थी।
मगर कुछ कर न सकी थी-
वो जो एक अबला थी,
वो जो एक लड़की थी।
इन्सान चीख़ा था,
तड़पा था,
चिल्लाया था।
मगर बेचारा कुछ कर नहीं पाया था।
इन्साफ़ बानो,
कैद में है आज भी।
कैद में उसी शैतान की।
और इन्सान तड़प रहा है,
आज भी।
जाने कब मिलेगी,
उसको-
उसकी बहन इन्साफ़ बानो।
जब तक न मिलेगी,
उसको-
उसकी बहन इन्साफ़ बानो,
इन्सान तड़पेगा सच मानो।
इन्सान तड़पेगा सच मानो।
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