कविताअतुकांत कविताबाल कविता
मैं एक चिड़िया प्यारी
समझ गयी तिनके की महिमा
जो सब लोगो को प्यारी
मैं एक चिड़िया प्यारी।
हरे भरे दरख्त में मेरा वास
सुन्दर सा प्राकृतिक अहसास
रैन बसेरा करती हूँ
परिश्रम सुबह से शाम।
घास पूस मेरे बिछौने
तिनको के सब खेल खिलौने
ओढ़ना सारा आकाश
मन में मेरे विश्वास।
वृक्ष की डाली पर है झूला
मकरंद से महके तन मेरा
और चहकूं मैं बाली में
मैं एक चिड़िया प्यारी।
आम की अमराई में
बहते पुरवाई में
पंख पसारे भरती हूं
नित नये उड़ान।
मै एक प्यारी चिड़िया
समझ गयी तिनके की महिमा
अपने घर में ही सुख से रहना।