कविताअतुकांत कविता
धुंध *
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भारत के वीर सपूतों ने,
सर्वस्व स्वयं बलिदान किया ।
आने वाली पीढ़ी की आंखों में
नए भारत का आह्वान किया।
देश प्रेम मनोभाव पिरोकर ,
आजाद - पथ प्रदान किया
किन्तु कैसा प्रभंज मचा ।
आजाद देश के लोगों में
ये कैसी कुंठा छायी है !
ये कैसा है उन्माद छिड़ा,
घर का भेदी ही लंका ढांहे ।
कथन यूँ ही चरितार्थ हुआ
कटु बातों में समय बिताते हैं ।
नयी पीढ़ी कहलाने वाले,
देश का मान बढ़ाने वाले
यूँ कल्पनाओं में खोए दिखते हैं ।
डिजिटल दुनिया मे खोए इतने
सपने भी टूटे दिखते हैं ।
वो वीर सुरक्षा प्रहरी मेरा,
सीने पर गोली खाता है ।
माँ का सम्मान बचाने को
हँस चीरनिद्रा में सोता है ।
जागो मेरे बच्चों जागो,
भारत- मां तुम्हें बुलाती है ।
हैं धुंध पड़े उनको तोड़ो
वो विवश खड़ी माँ रोती है ।
अखंड रहे भारत मेरा
तुम भी अपने कर्त्तव्य निभाओ।
हृदय में ऐसा अलख जगाओ
वीर पुत्रों की धरती है ये
कण- कण में ये हुंकार बढ़ाओ।
©️पल्लवी रानी
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
कल्याण, महाराष्ट्र
खूबसूरत रचना
आपका उत्साहवर्धन हमेशा मुझे आगे और अच्छा लिखने को प्रेरित करता है, हार्दिक आभार आदरणीय 🙏🙏
बेहतरीन ❤️
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी यूँ ही प्रेरित करती रहे, हार्दिक आभार 😊🙏❤